विलुप्त हो रही स्वागत में सतुआ खिलाने की परम्परा

  • विलुप्त हो रही स्वागत में सतुआ खिलाने की परम्परा

बुन्देलखण्ड में गर्मी का महीना आते ही हर घरों में मेहमानों को सतुआ खिलाया जाता था सादी व्यहो में लोग चना भूनकर सतुआ पिसवाकर घरों में रख लेते थे तथा मेहमानों को खिलाते थे ताकि शरीर में गर्मी से ठनदक बनी रहे। पूर्व के समय में लोग यात्रा के दौरान सतुआ जरूर साथ ने लेकर जाते थे ताकि जब कही रुकना हो या आराम करना हो तो सतुआ का घोल बना कर पीते थे जिससे उन्हें भीषण गर्मी से राहत मिलती थी तथा पेट में गैस आदि बीमारियों से छुटकारा मिलता था।

पहले तो लोग परंपरा में लोग शादी ब्याह में सतुआ को पानी में घोलकर पीने ने के रूप में देते थे ,मगर इस आधुनिक समय के लोग अब मीठा नमकीन आदि के रूप में शादियों में स्वागत करते हैं।
वहीं यदि आज से 40 वर्ष पूर्व की बात करे तो पहले शादी में सतुआ और चना दाल और गुड़ का पानी पीना होता था उसी में लोग खुश रहते थे यह बुंदेलखंड का पुराना कल्चर था ।वहीं अब यह कल्चर बहुत कम बचा है जो आज कि आधुनिकता फैशन के दौर में ख़तम होता जा रहा है।

जो देसी चीजें थी अब देसी खानपान का लोग प्रयोग बहुत कम करते हैं, लोग आज फैशन के दौर पर खाने में फास्ट फूड तेल मसाला युक्त बाजारू सामग्री से बने व्यंजनों को बनवाते है तथा उसी को खाते हैं, जिसके चलते पेट लीवर संबंधी अनेकों बीमारियां जन्म लेती है और लोग अस्पताल का रुख इस्तियार करते हैं।
आज भी बुजुर्ग बताते हैं कि सतुआ को चीनी ,गुड,या नमक के साथ खाने से शरीर में एक अलग ही ऊर्जा का संचार होता है इसको खाने से जल्दी पेट खराब नहीं होता हम लोग जब भी कहीं यात्रा व रिश्तेदारी में जाते थे तो वहा सतुआ जरूर खाने को मिलता था। सतुआ से भूंजुवा जाती के लोगो का रोजगार चलता था किसान चना को भूजवा कर चक्की में पिसवाकर घर लाते थे जिसमे व्यापारियों को भी सतुआ के रोजगार से बहुत फायदा होता था।
वहीं यदि आज के आधुनिक समय की बात करे तो बदलते परिवेश में आज लोगो के जीवन में भी बहुत बदलाव हो गया है आज के नवयुवक में देशी खानपान को भूलकर फास्ट फूड व अन्य देशों की बनने वाली रेशपियो का सेवन करते हैं जिसके चलते उन्हें जल्द ही पेट सम्बन्धी रोगों का सामना करना पड़ता है और उम्र के आखिरी पड़ाव तक में ज्यादातर अस्पताल के चक्कर काटने पड़ते है।

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