भीषण गर्मी में लू से बचने के लिए चने का सूखा सुस्का किसी संजीवनी से कम नहीं

भीषण गर्मी में लू से बचने के लिए चने का सूखा सुस्का किसी संजीवनी से कम नहीं

चना की भाजी खाने में तो वैसे भी स्वाद आता है ,मगर यह दवा के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है

चित्रकूट
इस समय गर्मी का तापमान 32 डिग्री सेल्सियस है, इस भीषण गर्मी से बेहाल लोग गरम हवा के लतेड़ो से बचने के लिए पूरा शरीर ढक कर घरों से निकलते हैं तथा पेड़ो के नीचे छाया व गन्ने का जूस आदि पीकर ठंडक महसूस करते हैं। कई कई बार हिट वेव के चलते लोगो को लू भी लग जाती है जिसके चलते कई दिनों तक अस्पताल में रहकर इलाज भी कराना पड़ता है। किन्तु बुन्देलखण्ड के ग्रामीण इलाकों में आज भी लोगो द्वारा लू लग जाने पर घरेलू नुस्खा चने के सूखे सुसके का सेवन व लेप लगाकर ठीक हो जाते हैं जिन्हें अस्पताल का मुंह भी नहीं देखना पड़ता।

देखा जाए तो मानिकपुर के पहाड़ी क्षेत्र की रहने वाली चुन्नी देवी बताती है कि लू से बचाव का यह देशी नुष्का किसी संजीवनी बूटी से कम नहीं है। हमारे पूर्वज पहले घरेलू नुष्के से दवा बनाकर ही ठीक हो जाते थे।हमेशा निरोगी रहते थे उन दिनों अस्पताल नहीं बने थे घरों में व वैध के यहां देशी जड़ीबूटियां व ऐसे ही पुराने नुस्खों का प्रयोग करके लोग गंभीर से गंभीर बीमारियों पर काबू पाकर ठीक होते थे।

सूस्का नुखसे के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी देते हुए ग्रामीण चुन्नी देवी ने बताया कि ठंड के दिनों में जब चने का साग हो जाता है तो कुछ लोग चना की भाजी काटकर घर में सूखा लेते हैं और रख लेते हैं । उसको खाते भी हैं और यदि गर्मियों के दिनों में किसी को लू लग जाती है तो पूरे शरीर में पानी से भीगा हुआ सुखा चना के सूस्के के लोग दवा के रूप में लगाते हैं,जिससे लू से तुरंत राहत मिलती है और शरीर में भी ठंडक बनी रहती है।
वैसे यह सस्का खाने में स्वाद भी बढ़ाता है और दवा के प्रयोग में भी आता है ।

बुंदेलखंड में महिलाएं खेत में इकट्ठा होकर चना की भाजी तोड़ने जा ती हैं,फिर उसको काट कर घर में सुखवा कर इसको सुरक्षित घरों में सहेज कर रखती हैं ।ताकि समय समय पर खाने में इस्तेमाल कर सके। लोग खाने में स्वाद के अनुसार लोग पानी में और चावल मूंग के दाल के साथ खाते है तथा श्ब्जी आदि में भी इस्तेमाल करते हैं। चित्रकूट के पाठा क्षेत्रो में गरीब आदिवासी रोजाना सब्जी महगांई के चलते नहीं खरीद पाते तो वहीं सब्जी की जगह सुसका को कड़ाही में भूनकर सब्जी बना कर खाते हैं यह सेहत के लिए बहुत लाभदायक होता है नियमित सेवन करने वाला जल्दी किसी बीमारी से ग्रशित नहीं होता। अब धीरे धीरे शहरी खानपान भी ग्रमीद क्षेत्रो में सुरु हो चुका है जिसके चलते इस नुस्खे को शहरों की तरह गांवों में भी लोग भूलते नजर आ रहे हैं किन्तु वहीं पठारी क्षेत्रो में अधिकांश गांवों में आज भी लोग इस नुस्खे को दवा के रूप में भोजन के रूप में बड़े चाव से खाते नजर आते हैं।

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